मुलाक़ातें

 तुम्हारे अजब मिज़ाज और कुछ हर्फ़ हमारे,

सिमटे हुए इस ज़िंदगी में यह दो पल हमारे

यह गीटीयाँ, यह सागर, यह रेत की बातें…

उनमे उलझते, सुलझते सिलसिले यूँ आते जाते…

अभी है कई रास्ते जिनसे हम गुज़रे नहीं,

अभी … ख़त्म नहीं हुई हमारी तुम्हारी मुलाक़ातें…



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