सराब



और फिर कुछ ऐसी हवा चली,
कि परत दर परत उतरती गई,
कुछ ऐसे बे-नक़ाब हुए अपने ही आइने में,
कि जिसकी रिफ़ाक़त में हुए थे मसरूफ़,उसी से हिज्र में बेपनाह तस्कीन मिली।

तू ही बता कैसे करते जुस्तजू उस सिलसिले की
जिसकी यारी में हमें रूहानियत न मिली?
अश्क बहाते भी तो किसके तसव्वुर में ? 
जब तेरी छुहन दिल की चौखट से ही लौट चली?

कुछ बे-हर्फ़ से हैं हम आज, कुछ शर्मिंदा भी,
मोहब्बत का नाम ऐसे ज़ाया किया, उफ़ यह हमारी बे-फ़िक्री।
तू तो बस दरिया में दूर तक फैला था एक सराब,
जैसे रोज़ ,मौजूद-ओ-मयस्सर, कोई  मुलाकात।


Glossary:

बे-नक़ाब : unveiled 
जुस्तजू: quest
रिफ़ाक़त: companionship 
मसरूफ़ : engrossed
हिज्र : separation
तस्कीन : comfort/सुकून/satisfaction 
रूहानियत : soulful
अश्क : tears
तसव्वुर : imagination/ thought
बे-हर्फ़ : speechless
ज़ाया : waste 
बे-फ़िक्री : casual attitude
सराब : mirage/illusion 
मौजूद-ओ-मयस्सर : easily available 

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