तस्वीर
एक तस्वीर ओझल सी होती है आज आँखों से,
एक बरस एक जुनून की तरह थी वो झूमती,
हाथों में ले रंग घूमते थे हम मुसल्सल,
और वो हमारी नादानी देख दूर से ही मुस्कुराती ।
हसरत यह थी कि एक रोज़ बेपनाह रंग भरेंगे,
बड़ी शिद्दत से उसे अपना कर लेंगे ,
पर इस रोज़ ,जब मौका भी है और दस्तूर भी,
फिर क्यों , ऐ दिल तू आज इतना तंग है?
फिर क्यों आज ,वो तस्वीर यूँ बेरंग है?
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जिसके अक्स में हमारी कहानी रहा करती थी,
क्या रंग भर पाते उसकी आँखों में हम,
जिसकी आँखें देख कर हमारी ज़िंदगानी चला करती थी|
एक अक्स ही तो था, कौनसा तुम वहां खड़ी थी ,
एक नखलिस्तान ही तो हो, सुखी तो फिर भी ज़मीं थी,
बहुत लड़ चुके थे अपने ज़मीर से,
शिकवा बहुत आँखों से कर लिया था ,
वाबस्ता थे खुदा की हर इनायत से हम,
बस उस एक तस्वीर की कमि थी|
Not even close to yours but just a lazy attempt at poetry!!